दिल्ली,आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है.इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है. देवी का यह रूप देवी पार्वती का विवाहित रूप है. भगवान शिव के साथ विवाह के बाद देवी महागौरी ने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किया इसलिए उनका नाम चंद्रघंटा (Chandraghanta) पड़ा। देवी के इस रूप की आराधना करने से साधक को गजकेसरी योग का लाभ प्राप्त होता है. मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) की विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में उन्नति, धन, स्वर्ण, ज्ञान व शिक्षा की प्राप्ति होती है.
मान्यता है कि जिन्हें मधुमेह, टायफाइड, किडनी, मोटापा, मांस-पेशियों में दर्द, पीलिया आदि है उन्हें देवी के तीसरे स्वरूप की पूजा करने से लाभ मिलता है. मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) को कनेर का फूल अत्यंत प्रिय है. मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) की पूजा करने से सहास बढ़ता है और भय से मुक्ति मिलती है. मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) की दस भुजाएं हैं जो अस्त्रों और शस्त्रों से सुशोभित है. मां की सवारी सिंह है और वह हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहती हैं. तंत्र साधना में मां का यह स्वरूप मणिपुर चक्र को जाग्रत करता है. चंद्रघंटा (Chandraghanta) मांता हमेशा दुष्टों का संहार करने के लिए तैयार रहती हैं. मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) की पूजा करने से मंगल ग्रह के दोषों से मुक्ति मिलती है.
मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) की ऐसे करें पूजा
चौकी पर स्वच्छ वस्त्र पीत बिछाकर मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) की प्रतिमां को स्थापित करें. गंगाजल छिड़ककर इस स्थान को शुद्ध करें. वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें. मां को गंगाजल, दूध, दही, घी शहद से स्नान कराने के पश्चात वस्त्र, हल्दी, सिंदूर, पुष्प, चंदन, रोली, मिष्ठान और फल का अर्पण करें.
मां का भोग
चंद्रघंटा (Chandraghanta) पर रामदाना का भोग लगाया जाता है. मां के इस रूप को दूध, मेवायुक्त खीर या फिर दूध से बनी मिठाईयों का भी भोग लगाकर मां की कृपा पा सकते हैं. इससे भक्तों को समस्त दुखों से मुक्ति मिलती हैं.
चंद्रघंटा (Chandraghanta) के लिए मंत्र
1. पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
2. वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा (Chandraghanta) यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु मांला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
3.ऐं श्रीं शक्तयै नम:
4.या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: