कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए 21 दिन के लॉकडाउन की वजह से हर बड़े शहरों से मज़दूरों का पलायन हो रहा है.
मध्य प्रदेश जैसे राज्य से हज़ारों की तादाद में ग़रीब मज़दूर हर साल काम की तलाश में मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों का रुख करते है.
लेकिन लॉकडाउन की वजह से जहां हज़ारों मज़दूर पैदल ही अपने घरों की तरफ चल पड़े है तो कई को ठेकेदारों ने हालात को भांप कर पहले ही जगह छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया.
ऐसे ही मुंबई से लौटे एक मज़दूर से बीबीसी ने बात की.
24 साल के अजय कोल रीवा ज़िले के सेमरिया तहसलील के बभनी गांव के रहने वाले हैं. अजय कोल के परिवार में माता, पत्नी और 2 साल का एक बेटा है. हर साल कम से कम 5-6 महीने के लिए इन्हें परिवार चलाने के लिए अपना गांव छोड़ना पड़ता है
अजय मुंबई के करीब इग्तपुरी में एक ठेकेदार के पास मकान बनाने के काम में मज़दूरी करते है. उन्होंने बताया, "मैं चूना गारा का काम मुंबई में करता हूं. गांव में काम नहीं रहता है तो हमें बाहर जाना पड़ता है. हमें वहां पर 300 रुपये रोज़ाना मिलता है."
गांव में काम मिलना बंद हो जाता है तो मजबूरी में इन्हें अपने परिवार को छोड़ना पड़ता है. हालांकि अजय अपनी कमाई में से 6000 हज़ार रुपये हर माह बचा लेते है. अजय वहां पर 1500 रुपये की झोपड़ी में किराये से रहते है और बचे रुपयों को अपने घर पर भेजते हैं.
अजय का कहना है कि मुंबई के हालात लगातार बिगड़ने लगे थे तो उनके ठेकेदार ने उन्हें 21 तारीख़ को ही वहां से जाने के लिए बोल दिया था जिसकी वजह से वो वहां से ट्रेन से निकल गए और अपने गांव पहुंच गए.
इसके कुछ दिनों बाद सरकार ने परिवहन के सभी माध्यमों को रोक दिया जिसकी वजह से हज़ारो की तादाद में मज़दूर सड़कों पर चल रहे हैं ताकि अपने घर पहुंच सकें.
अजय की पत्नी अपाहिज है और कोई काम नहीं कर सकती है. मां जरूर गांव में फसल काटने जैसे कामों में जाती है जिसके लिए उसे 200 रुपये दिन का मिलता है.
अजय जब अपने गांव में होता है तो छोटे मोटे काम करके परिवार को चलाना पड़ता है. उसका दावा है कि वह कभी चाय बेचता है तो कभी कुछ और काम करता है लेकिन उससे घर चलना आसान नहीं होता है इसलिए बड़े शहरों का रुख करना उसके जैसे मज़दूरों के लिए ज़िदंगी की हक़ीक़त है.
इस साल अजय जनवरी माह में मुंबई गया था लेकिन हालात ने उसे जल्दी वापस आने के लिए मजबूर कर दिया. उससे जब पूछा गया कि आगे क्या होगा तो उसने कहा, "कुछ भी नहीं पता. अब क्या होगा हमारा. हमारा जीवन कैसे चलेगा."
जिस तरह से इनके हालात इन मज़दूरों को गांव छोड़ने पर मजबूर करते है उसी तरह से इस बार कोरोना ने इन लोगों को वो जगह छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है जहां से यह लोग अपने परिवार को चलाते हैं.