आखिर क्या है पालघर में साधुओं की हत्या का रहस्य ?

नई  दिल्ली : [टाईम फॉर न्यूज़ -रमेशचन्द्र व्दिवेदी] महाराष्ट्र के पालघर में  साधुओं को पीट पीट कर दौडा दौडा कर पुलिस के सामने निर्दयता पूर्वक मारे जाने वाली घटना मानवता को शर्मशार करने के साथ साथ महाराष्ट्र सरकार के लिये चुनौती पूर्ण संकेत है । वास्तव में यह घटना दिल दहला देने वाली घटना है ।



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यदि लांकडाउन नही होता तो इस की आग पूरे देश में फैलती और भयंकर ज्वाला को रोकने के लिये केन्द्र सरकार को इस कमान को संभालने के लिये मजबूर होना पड़ता । अब पालघर की घटना की ओर नजर डाले, तो वे कौन से लोग हैं जिन्होंने जूना अखाडे़  के दो साधुओं और उनके ड्राईवर को क्रूरता से मार डाला । यही नही इसके पहले एक डांक्टर के साथ निर्दयतापूर्ण हत्या कर दी गयी थी । इस घटना ने पूरे देश के लोगो को झकझोर कर रख दीया है। भारतीय जीवन दर्शन में साधुभाव का महत्वपूर्ण स्थान है ।अब सवाल यह उठता है कि यहां की पुलिस की उपस्थिति में भीड़ द्वारा साधुओं की हत्या होना समय के साथ  सामाजिक पतन का संकेत है । इस घटना के कई पहलू सामने आ रहे है ।


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भीड़ द्वारा साधुओं को अपने कब्जे में लेने के पश्चात करीब चार घंटे तक चौकी पर पर्याप्त पुलिसबल नही बुलाया गया और रिर्पोट दर्ज करने में देर की गयी । इस भयंकर घटना को गंभीरता के साथ अमल न करने की शिकायत के नजरिये देखा जा रहा है । दूसरी ओर इस घटना को पहले तीन चोरों की हत्या के रूप में प्रसारित किया गया । हत्या करने वाली भीड़ ने लांकडाउन की धज्जियां उडा़ते हुए इस वित्स घटना को अंजाम दिया और प्रशासन के नियमों का डर न होने की चुनौती दे डाली । इस घटना को पहले बच्चा चोरी के अफवाह के कारण आदिवासियों की भीड़ एकत्र होने की बात कही जाती है। फिर किडनी चुराने का भ्रामक अफवाह फैलाई जाती है और उस उद्देश्य से अपहरण का प्रचार किया जाता है ।


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इसके बाद पुन: यह कहा जाता है कि आदिवासी पहले भी सरकारी कर्मचारियों तथा अन्य धर्मावलंबियो को इधर से गुजरने के विरुद्ध थे। इसके बाद यह खबर आती है कि आदिवासियों की अधिकांश संख्या  धर्मांतरण कर ईसाई बने हुए हैं । इस लिये वे यहां दूसरे धर्म के लोगो को देखना पसंद नही करते । सुनने और कहने में यह भी आ रहा है कि  काश्तकारों के नाम पर एक ईसाई एनजीओ ने यह संकल्प किया है कि नक्सलियों के तौर तरीके  से इस संगठन द्वारा सरकारी तंत्र आदिवासियों का शत्रु बताया जाता है । यह वर्ग हिन्दू धर्म को इस धर्म का शत्रु बताता है । उनका कहना है कि हिन्दू धर्म इन्हे असुरों का वंशज बताता है । तुलसी की माला पहनने वाले इस धर्मान्तरण के दुश्मन मानते है ।


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यह भी कहा जाता है कि इस संगठन ने माकपा से गठजोड़ ने पालघर जिले के दहाणू विधान सभा क्षेत्र  माकर्सवादियों की मजबूती दी है । जिससे पिछले चार चुनावों मे से इन्हे दो चुनावो में कामयाबी मिली है । वर्तमान में भी दहाणू का विधायक माकर्सवादी विनोद निकोले हैं । इस गठजोड़ से यह क्षेत्र अराजकता का माफिया ग्रुप बन चुका है और इस जघन्य अपराध को करने में जरा सा भी शासन के अंकुश से भयभीत न होकर क्रूरता पूर्ण हत्या का अंजाम दिया गया है । इसके 12वर्ष पहले ओडिसा के कंधमाल में स्वामी लझ्मणानंद सरस्वती की हत्या नक्सल धर्मांतरण गठजोड़ माफिया की ओर से की गयी थी। पालघर काण्ड राष्ट्रव्यापी आयाम और धर्मांतरण कराने वाले संगठनों के स्थानीय प्रभाव को देखते हुए राज्य सीआईडी द्वारा कितनी भी निष्पक्ष  जाँच का ढिंढोरा पीटा जाय लेकिन संन्तोष जनक जाँच होना मुश्किल है ।अगर जाँच में कुछ तथ्य मिल भी जाते हैं तो वे आदिवासी जो धर्मांतरण के प्यादे में उनका कोई लेन देन नही होगा वही बलि के बकरे बनेगें ।


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